सवाल करती कई आँखें मुंतज़िर हैं यहाँ
जवाब आज भी हम सोच कर नहीं आए
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तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
सिलसिला अब भी ख़्वाबों का टूटा नहीं
इतना क्यूँ शरमाते हैं
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
हमारे बारे में क्या क्या न कुछ कहा होगा
बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
अक़्द-नामे
तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
आँखों के सामने कोई मंज़र नया न था
सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
आँगन में छोड़ आए थे जो ग़ार देख लें
दरियाओं की नज़्र हुए