सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
ये लग रहा है कि तुझ को भी भूल जाएँगे
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पता कहीं से तिरा अब के फिर लगा लाए
जिस से मिल बैठे लगी वो शक्ल पहचानी हुई
तेज़ी से बीतते हुए लम्हों के साथ साथ
जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले
इतना क्यूँ शरमाते हैं
तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता था
घर की हद में सहरा है
ठिकाने यूँ तो हज़ारों तिरे जहान में थे
दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए
पहले ही क्या कम तमाशे थे यहाँ