तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
कुछ और साथ में परछाइयाँ लगा लाए
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दरियाओं की नज़्र हुए
आवारा परछाइयाँ
तलाश जिन को हमेशा बुज़ुर्ग करते रहे
दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ
कोई ग़ुल हुआ था न शोर-ए-ख़िज़ाँ
सदाएँ क़ैद करूँ आहटें चुरा ले जाऊँ
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
कहा था तुम से कि ये रास्ता भी ठीक नहीं
सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे
किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं
हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र