कहा था तुम से कि ये रास्ता भी ठीक नहीं
कभी तो क़ाफ़िले वालों की बात रख लेते
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आँखों के बंद बाब लिए भागते रहे
ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें
सड़क पे चलते हुए आँखें बंद रखता हूँ
सहीह कह रहे हो
न इब्तिदा की ख़बर और न इंतिहा मालूम
दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ
हमारे बारे में क्या क्या न कुछ कहा होगा
सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
आवारा परछाइयाँ
पहले ही क्या कम तमाशे थे यहाँ