नुसरत ग्वालियारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नुसरत ग्वालियारी

नुसरत ग्वालियारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नुसरत ग्वालियारी
नामनुसरत ग्वालियारी
अंग्रेज़ी नामNusrat Gwaliari
जन्म की तारीख1938

वो पता अपनी शाख़ से ज़रा जुदा हुआ ही था

वो गुलाबी बादलों में एक नीली झील सी

वो अंधी राह में बीनाइयाँ बिछाता रहा

उजाड़ तपती हुई राह में भटकने लगी

शफ़क़ सी फिर कोई उतरी है मुझ में

रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे

क़ानून जैसे खो चुका सदियों का ए'तिमाद

मिलना पड़ता है हमें ख़ुद से भी ग़ैरों की तरह

मिरे चराग़ की नन्ही सी लौ से ख़ाइफ़ है

मैं अजनबी हूँ मगर तुम कभी जो सोचोगे

कुछ नौ-जवान शहर से आए हैं लौट कर

कुछ एहतियात परिंदे भी रखना भूल गए

कितने ज़ेहनों को कर गया गुमराह

हुस्न उतना एक पैकर मैं सिमट सकता नहीं

हम तिरी तल्ख़ गुफ़्तुगू सुन कर

हर शख़्स अपनी अपनी जगह यूँ है मुतमइन

इक क़िस्म और ज़िंदा रहने की

दिलों के बीच की दीवार गिर भी सकती थी

ढूँडने वाले ग़लत-फ़हमी मैं थे

बोलते रहते हैं नुक़ूश उस के

भूल जाने का मुझे मशवरा देने वाले

बच्चा मजबूरियों को क्या जाने

शफ़क़ का रंग का ख़ुशबू का ख़्वाब था मैं भी

पलक पलक सैल-ए-ग़म अयाँ है न कोई आहट न कोई हलचल

नक़्श-ए-पा उस के रास्ता उस का

मिरे ग़ुबार-ए-सफ़र का मआल रौशन है

लहू उछालते लम्हों का सिलसिला निकला

क्यूँ फ़लक-आश्ना किया था मुझे

झील के पार धनक-रंग समाँ है कैसा

चाँद की कश्ती सजी है और मैं

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