वो गुलाबी बादलों में एक नीली झील सी
होश क़ाएम कैसे रहते था ही कुछ ऐसा लिबास
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चाँद की कश्ती सजी है और मैं
पलक पलक सैल-ए-ग़म अयाँ है न कोई आहट न कोई हलचल
क़ानून जैसे खो चुका सदियों का ए'तिमाद
वो अंधी राह में बीनाइयाँ बिछाता रहा
हर शख़्स अपनी अपनी जगह यूँ है मुतमइन
मैं अजनबी हूँ मगर तुम कभी जो सोचोगे
कुछ नौ-जवान शहर से आए हैं लौट कर
बोलते रहते हैं नुक़ूश उस के
शफ़क़ सी फिर कोई उतरी है मुझ में
कितने ज़ेहनों को कर गया गुमराह
लहू उछालते लम्हों का सिलसिला निकला