अश्क Poetry

सलाम लोगो

हबीब जालिब

आकाश पे बादल छाए थे

बीना गोइंदी

जो सकूँ न रास आया तो मैं ग़म में ढल रहा हूँ

अख़्तर आज़ाद

ख़्वाब

बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे

फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले

वक़्त के पास कहाँ सारे हवाले होंगे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

पुराने रंग में अश्क-ए-ग़म ताज़ा मिलाता हूँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

फिर सर-ए-दार-ए-वफ़ा रस्म ये डाली जाए

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

शाम-ए-ग़म याद नहीं सुब्ह-ए-तरब याद नहीं

ज़ुहैर कंजाही

आँखों में है बसा हुआ तूफ़ान देखना

ज़ुबैर फ़ारूक़

इम्कान

ज़िया जालंधरी

इक ख़्वाब था आँखों में जो अब अश्क-ए-सहर है

ज़िया जालंधरी

ये ख़्वाब सारे

ज़िया फ़ारूक़ी

ये उदासी ये फैलते साए

ज़ेहरा निगाह

इसी दर से इसी दीवार से आगे नहीं बढ़ता

ज़िशान मेहदी

शोला-ए-मौज-ए-तलब ख़ून-ए-जिगर से निकला

ज़ेब ग़ौरी

ज़िंदगानी की हक़ीक़त तब ही खुलती है मियाँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

सभी को ख़्वाहिश-ए-तस्ख़ीर-ए-शौक़-ए-हुक्मरानी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे

ज़करिय़ा शाज़

उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए

ज़करिय़ा शाज़

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

जहाँ से दोश-ए-अज़ीज़ाँ पे बार हो के चले

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

अब अश्क तो कहाँ है जो चाहूँ टपक पड़े

ज़हूरुल्लाह बदायूनी नवा

मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो

ज़हीर अहमद ताज

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