अश्क Poetry (page 29)

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में

आग़ा हज्जू शरफ़

इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए

आग़ा हज्जू शरफ़

किसी ने ख़्वाब में आकर मुझे ये हुक्म दिया

अफ़ज़ल ख़ान

वो जो इक शख़्स वहाँ है वो यहाँ कैसे हो

अफ़ज़ल ख़ान

कल अपने शहर की बस में सवार होते हुए

अफ़ज़ल ख़ान

सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कर भी लूँ अगर ख़्वाब की ताबीर कोई और

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

मैं जब भी छूने लगूँ तुम ज़रा परे हो जाओ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में

आफ़ताब हुसैन

बे-क़रारी

अफ़रोज़ आलम

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है

अदीम हाशमी

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

माना अपनी जान को वो भी दिल का रोग लगाएँगे

अबु मोहम्मद सहर

हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क

आबरू शाह मुबारक

तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है

आबरू शाह मुबारक

सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान

आबरू शाह मुबारक

न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया

आबरू शाह मुबारक

और क्या रह गया है होने को

अबरार अहमद

हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम

अब्र अहसनी गनौरी

किसे ख़बर थी कि ख़ुद को वो यूँ छुपाएगा

आबिद ख़ुर्शीद

रात

आबिद आलमी

पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

रूठे हैं हम से दोस्त हमारे कहाँ कहाँ

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

समुंदर पार आ बैठे मगर क्या

अब्दुल्लाह जावेद

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

अब्दुल वहाब यकरू

यूँ अश्क बरसते हैं मिरे दीदा-ए-तर से

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

पलकों से गिरे है अश्क टप टप

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

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