अश्क Poetry (page 3)

दोनों चश्मों से मरी अश्क बहा करते हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

उन की रफ़्तार से दिल का अजब अहवाल हुआ

वज़ीर अली सबा लखनवी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

दामन के दाग़ अश्क-ए-नदामत ने धो दिए

वासिफ़ देहलवी

वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका

वासिफ़ देहलवी

कहते हैं सर-ए-राह मुनासिब नहीं मिलना

वासिफ़ देहलवी

कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा

वासिफ़ देहलवी

हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ

वासिफ़ देहलवी

इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे

वसीम बरेलवी

सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

अगर रोना ही अब मेरा मुक़द्दर है मोहब्बत में

वक़ार मानवी

ज़िंदगी इतनी बे-मज़ा क्यूँ है

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

नज़र मिलते ही बरसे अश्क-ए-ख़ूँ क्यूँ दीदा-ए-तर से

वक़ार बिजनोरी

दरिया-ए-मोहब्बत से 'मुहिब' ले ही के छोड़ी

वलीउल्लाह मुहिब

शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे

वलीउल्लाह मुहिब

साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट

वलीउल्लाह मुहिब

मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास

वलीउल्लाह मुहिब

लाला-रू तुम ग़ैर के पाले पड़े

वलीउल्लाह मुहिब

हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता

वली उज़लत

तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब

वली उज़लत

तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब

वली उज़लत

न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ रक़्स

वली उज़लत

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

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