अश्क Poetry (page 4)

अगर मैं मोजज़े को ख़ाकसारी के अयाँ करता

वली उज़लत

अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता

वली उज़लत

हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है

वली मोहम्मद वली

उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का

वाजिद अली शाह अख़्तर

दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें

वहीदा नसीम

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

वहीद अख़्तर

ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर

विकास शर्मा राज़

दर पे तेरे जो सर झुका लूँगा

विजय शर्मा अर्श

सीने के दाग़ उन को दिखाए न जा सके

वली मदनी

अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं

उषा भदोरिया

एक दो अश्क बहाती है चली जाती है

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

इश्क़ के हाथों में परचम के सिवा कुछ भी नहीं

उरूज ज़ैदी बदायूनी

ऐ दिल-ए-ख़ुद-ना-शनास ऐसा भी क्या

उम्मीद फ़ाज़ली

अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं

त्रिपुरारि

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

तिलोकचंद महरूम

नज़र उठा दिल-ए-नादाँ ये जुस्तुजू क्या है

तिलोकचंद महरूम

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

तिलोकचंद महरूम

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

तौक़ीर तक़ी

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

तौक़ीर तक़ी

ज़ब्त करता हूँ वले इस पर भी है ये जोश-ए-अश्क

मीर तस्कीन देहलवी

रहने वालों को तिरे कूचे के ये क्या हो गया

मीर तस्कीन देहलवी

ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं

तारिक़ नईम

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