अश्क Poetry (page 6)
हुस्न का दामन फिर भी ख़ाली
सूफ़ी तबस्सुम
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
सूफ़ी तबस्सुम
जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम
जब अश्क तिरी याद में आँखों से ढले हैं
सूफ़ी तबस्सुम
हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद
सूफ़ी तबस्सुम
ऐसे भी थे कुछ हालात
सूफ़ी तबस्सुम
सिलसिला ख़त्म कर चले आए
सुभाष पाठक ज़िया
मुझे मलाल में रखना ख़ुशी तुम्हारी थी
सुबहान असद
वो नग़्मगी का ज़ाइक़ा उस की सदा में था
सोहन राही
लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया
सिया सचदेव
नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े
सिराज लखनवी
जो अश्क सुर्ख़ है नामा-निगार है दिल का
सिराज लखनवी
हर अश्क-ए-सुर्ख़ है दामान-ए-शब में आग का फूल
सिराज लखनवी
दिया है दर्द तो रंग-ए-क़ुबूल दे ऐसा
सिराज लखनवी
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
सिराज लखनवी
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
सिराज लखनवी
निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
सिराज लखनवी
न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है
सिराज लखनवी
मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है
सिराज लखनवी
मिटा सा हर्फ़ हूँ बिगड़ी हुई सी बात हूँ मैं
सिराज लखनवी
बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया
सिराज लखनवी
अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से
सिराज लखनवी
अब न कुछ सुनना न सुनाना रात गुज़रती जाती है
सिराज लखनवी
आह ये आँसू प्यारे प्यारे
सिराज लखनवी
पकड़ा हूँ किनारा-ए-जुदाई
सिराज औरंगाबादी
तिरी निगाह की अनियाँ जिगर में सलियाँ हैं
सिराज औरंगाबादी
तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़
सिराज औरंगाबादी
सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया
सिराज औरंगाबादी
मिरा दिल नहीं है मेरे हात तुम बिन
सिराज औरंगाबादी
कल सीं बे-कल है मिरा जी यार कूँ देखा न था
सिराज औरंगाबादी
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