नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े
क्या ख़बर कितनी बहारों को ख़िज़ाँ करना पड़े
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
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Habib Jalib
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आह ये आँसू प्यारे प्यारे
आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और
हो गया आइना-ए-हाल भी गर्द-आलूदा
ये जज़्र-ओ-मद है पादाश-ए-अमल इक दिन यक़ीनी है
ख़बर रिहाई की मिल चुकी है चराग़ फूलों के जल रहे हैं
चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो
कुछ और माँगना मेरे मशरब में कुफ़्र है
मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है
ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब
दुनिया का न उक़्बा का कोई ग़म नहीं सहते
दम घुटा जाता है मोहब्बत का
अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है