आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और
हर हौसला-ए-दिल को मोहब्बत नहीं कहते
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न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है
अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है
दाम-बर-दोश फिरें चाहे वो गेसू बर-दोश
आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी
वो भीड़ है कि ढूँढना तेरा तो दरकिनार
न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़
काफ़िरी में भी जो चाहत होगी
जलती रहना शम-ए-हयात
जो अश्क सुर्ख़ है नामा-निगार है दिल का
अजब सूरत से दिल घबरा रहा है