आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में
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दिया है दर्द तो रंग-ए-क़ुबूल दे ऐसा
क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से
नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ी तो मगर ये होश किसे
मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना
ये जब्र-ए-ज़िंदगी न उठाएँ तो क्या करें
ये आधी रात ये काफ़िर अंधेरा
ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़
आह ये आँसू प्यारे प्यारे
न पी सको तो इधर आओ पोंछ दूँ आँसू