न पी सको तो इधर आओ पोंछ दूँ आँसू
ये तुम ने सुन लिए इस दिल के सानेहात कहाँ
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ख़ुदा-वंदा ये कैसी सुब्ह-ए-ग़म है
वो भीड़ है कि ढूँढना तेरा तो दरकिनार
हर नफ़्स उतनी ही लौ देगा 'सिराज'
आह ये आँसू प्यारे प्यारे
क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम
ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ
कुछ और माँगना मेरे मशरब में कुफ़्र है
जान सी शय की मुझे इश्क़ में कुछ क़द्र नहीं
ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब
चराग़ सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा
ये जब्र-ए-ज़िंदगी न उठाएँ तो क्या करें