ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब
अब हमें प्यास लगी है तो कोई जाम नहीं
Faiz Ahmad Faiz
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हाँ तुम को भूल जाने की कोशिश करेंगे हम
ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
कम-ज़र्फ़ की निय्यत क्या पिघला हुआ लोहा है
ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ
चमक शायद अभी गीती के ज़र्रों की नहीं देखी
आँसू हैं कफ़न-पोश सितारे हैं कफ़न-रंग
निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
ये आधी रात ये काफ़िर अंधेरा
आग और धुआँ और हवस और है इश्क़ और
एक एक से भीक आँसुओं की माँग रहा हूँ
क्यूँ ध्यान बटाती है मिरा गर्दिश-ए-दुनिया