चमक शायद अभी गीती के ज़र्रों की नहीं देखी
सितारे मुस्कुराते क्यूँ हैं ज़ेब-ए-आसमाँ हो कर
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ये एक लड़ी के सब छिटके हुए मोती हैं
कम-ज़र्फ़ की निय्यत क्या पिघला हुआ लोहा है
ये ज़मीं ख़ुद हो जन्नतों का सुहाग
मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है
ज़र्ब-उल-मसल हैं अब मिरी मुश्किल-पसंदियाँ
लहू में डूबी है तारीख़-ए-ख़िल्क़त-ए-इंसाँ
आप के पाँव के नीचे दिल है
मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है
ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने
ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ
हर लग़्ज़िश-ए-हयात पर इतरा रहा हूँ मैं
गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ