ज़र्ब-उल-मसल हैं अब मिरी मुश्किल-पसंदियाँ
सुलझा के हर गिरह को फिर उलझा रहा हूँ मैं
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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चराग़ सज्दा जला के देखो है बुत-कदा दफ़्न ज़ेर-ए-काबा
गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ
तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम
अब न कुछ सुनना न सुनाना रात गुज़रती जाती है
इस सोच में बैठे हैं झुकाए हुए सर हम
रात भर शम्अ जलाता हूँ बुझाता हूँ 'सिराज'
दिया है दर्द तो रंग-ए-क़ुबूल दे ऐसा
क्यूँ ध्यान बटाती है मिरा गर्दिश-ए-दुनिया
चंद तिनकों की सलीक़े से अगर तरतीब हो
काफ़िरी में भी जो चाहत होगी
सज्दा-ए-इश्क़ पे तन्क़ीद न कर ऐ वाइ'ज़
इक काफ़िर-ए-मुतलक़ है ज़ुल्मत की जवानी भी