सज्दा-ए-इश्क़ पे तन्क़ीद न कर ऐ वाइ'ज़
देख माथे पे अभी चाँद नुमायाँ होगा
Habib Jalib
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ख़बर रिहाई की मिल चुकी है चराग़ फूलों के जल रहे हैं
दाम-बर-दोश फिरें चाहे वो गेसू बर-दोश
अब न कुछ सुनना न सुनाना रात गुज़रती जाती है
हो गया आइना-ए-हाल भी गर्द-आलूदा
मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है
ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब
यौम-ए-आज़ादी
कैसे फाँदेगा बाग़ की दीवार
न पी सको तो इधर आओ पोंछ दूँ आँसू
न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है
फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है
क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी