वर्ष Poetry

शम्अ'

मुबश्शिर अली ज़ैदी

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

मुझ से पूछो

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ

ज़ुबैर रिज़वी

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

वक़्त कातिब है

ज़िया जालंधरी

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

एक तिलिस्मी खेल

ज़ेहरा निगाह

मिडिल-क्लास

ज़ेहरा अलवी

आँसू की वजह

ज़ीशान साहिल

हम बे-घरों के दिल में जगाती है डर गली

ज़िशान इलाही

अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का

ज़ेब ग़ौरी

न आँसुओं में कभी था न दिल की आह में है

ज़मीर काज़मी

रात का हुस्न भला कब वो समझता होगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

मनफ़ी शुऊर का इक वरक़

ज़ाहिद मसूद

जम्हूरियत

ज़ाहिद मसूद

कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह

ज़ाहिद फ़ारानी

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

किसी का हो नहीं सकता है कोई काम रोज़े में

ज़फ़र कमाली

साल-हा-साल से ख़ामोश थे गहरे पानी

ज़फ़र इक़बाल

किस नए ख़्वाब में रहता हूँ डुबोया हुआ मैं

ज़फ़र इक़बाल

खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे

ज़फ़र इक़बाल

मेरे नाज़ुक सवाल में उतरो

ज़फ़र हमीदी

आँखें यूँ ही भीग गईं क्या देख रहे हो आँखों में

ज़फ़र गोरखपुरी

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