वर्ष Poetry (page 16)

1973 की एक नज़्म

अहमद हमेश

नित-नए रंग से करता रहा दिल को पामाल

अहमद हमदानी

न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है

अहमद फ़राज़

उस मंज़र-ए-सादा में कई जाल बंधे थे

अहमद फ़राज़

हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो

अहमद फ़राज़

दिल बदन का शरीक-ए-हाल कहाँ

अहमद फ़राज़

इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक

अहमद अज़ीम

ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है

अहमद अज़ीम

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया

अफ़ज़ल मिनहास

या साल ओ माह था तू मिरे साथ या तो अब

आफ़ताब शाह आलम सानी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

तंहाई

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को

आदिल मंसूरी

अर्सा-ए-माह-ओ-साल से गुज़रे

आदिल फ़रीदी

माह अच्छा है बहुत ही न ये साल अच्छा है

अदीम हाशमी

जो मह ओ साल गुज़ारे हैं बिछड़ कर हम ने

अदीम हाशमी

राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का वबाल अच्छा है

अदीम हाशमी

हम बहर-ए-हाल दिल ओ जाँ से तुम्हारे होते

अदीम हाशमी

तमाम हिज्र उसी का विसाल है उस का

अबुल हसनात हक़्क़ी

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत

आबरू शाह मुबारक

ज़िंदा आदमी से कलाम

अबरार अहमद

और क्या रह गया है होने को

अबरार अहमद

न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ

आबिद हशरी

अजनबी

आबिद आलमी

मिरे मह ओ साल की कहानी की दूसरी क़िस्त इस तरह है

अब्दुल अहद साज़

ज़ियारत

अब्दुल अहद साज़

गोशे

अब्दुल अहद साज़

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