माह अच्छा है बहुत ही न ये साल अच्छा है
फिर भी हर एक से कहता हूँ कि हाल अच्छा है
Jaun Eliya
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Allama Iqbal
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Gulzar
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं
वो जो तर्क-ए-रब्त का अहद था कहीं टूटने तो नहीं लगा
ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर
आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर
तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए
शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में
इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा
मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू
कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक