मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब
मुझे दुनिया की पस्ती में उतर जाना नहीं आता
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सदाएँ एक सी यकसानियत में डूब जाती हैं
उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए
रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो
मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
बिछड़ के तुझ से न देखा गया किसी का मिलाप
आया हूँ संग ओ ख़िश्त के अम्बार देख कर
ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर
दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
परिंदा जानिब-ए-दाना हमेशा उड़ के आता है
हम बहर हाल दिल ओ जाँ से तुम्हारे होते
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था