मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ
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शोर सा एक हर इक सम्त बपा लगता है
तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए
माह अच्छा है बहुत ही न ये साल अच्छा है
आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर
राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का वबाल अच्छा है
कुछ हिज्र के मौसम ने सताया नहीं इतना
दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए
बिछड़ के तुझ से न देखा गया किसी का मिलाप
बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई
बिकता तो नहीं हूँ न मिरे दाम बहुत हैं
जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे
तअल्लुक़ अपनी जगह तुझ से बरक़रार भी है