याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3370) Peoples Rate This
परिंदा जानिब-ए-दाना हमेशा उड़ के आता है
आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर
चल दिया वो देख कर पहलू मिरी तक़्सीर का
रख़्त-ए-सफ़र यूँही तो न बेकार ले चलो
इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए
मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता
राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का वबाल अच्छा है
किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया
सदाएँ एक सी यकसानियत में डूब जाती हैं
मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब