साइबाँ Poetry

ज़ेर-ए-बाम गुम्बद-ए-ख़ज़रा अज़ाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ग़ज़ब की धार थी इक साएबाँ साबित न रह पाया

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

दिनों में दिन थे शबों में शबें पड़ी हुई थीं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कैसी ज़मीं सुकून कहाँ का कहाँ की छाँव

ज़िशान इलाही

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

ज़फ़र गोरखपुरी

बादल बरस के खुल गया रुत मेहरबाँ हुई

वज़ीर आग़ा

जैसे कश्ती और उस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं

तालीफ़ हैदर

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

शहर में साएबाँ बहुत से हैं

सय्यद मेराज जामी

शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है

सिद्दीक़ मुजीबी

मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा

सिद्दीक़ मुजीबी

ज़लज़ला आया मकाँ गिरने लगा

शुमाइला बहज़ाद

ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़

शौक़ बहराइची

सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर

शारिब मौरान्वी

जो आँसुओं की ज़बाँ को मियाँ समझने लगे

शारिब मौरान्वी

मुबारक वो साअत

शकेब जलाली

तीर ख़त्म हैं तो क्या हाथ में कमाँ रखना

शफ़ीक़ सलीमी

तेज़ आँधी ने फ़क़त इक साएबाँ रहने दिया

शफ़ीक़ सलीमी

देख कर उस को मुझे धचका लगा

शफ़ीक़ सलीमी

बढ़ रहे हैं शाम के मौहूम साए चल पड़ो

सरदार सलीम

उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी

सलीम शहज़ाद

यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है

सलीम शहज़ाद

रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था

सलीम शहज़ाद

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

हाथ आ सका है सिलसिला-ए-जिस्म-ओ-जाँ कहाँ

सहर अंसारी

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