ग़ज़ब की धार थी इक साएबाँ साबित न रह पाया
हमें ये ज़ोम था बारिश में अपना सर न भीगेगा
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हम कहाँ आ गए
जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा
कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा
तमाम रास्ता फूलों भरा तुम्हारा था
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
बे-कराँ
शरीफ़-ज़ादा
मैं अपनी दास्ताँ को आख़िर-ए-शब तक तो ले आया
सम्तों का ज़वाल
कुत्तों का नौहा
दूसरा आदमी
रद्द-ए-अमल