मौसम Poetry

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

नज़्म

मुबश्शिर अली ज़ैदी

बशारत के कासों में

हामिद जीलानी

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में

अब्दुल्लाह कमाल

आकाश पे बादल छाए थे

बीना गोइंदी

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

देख कर वहशत निगाहों की ज़बाँ बेचैन है

गौतम राजऋषि

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो

मिट्टी मौसम और रंग

लहु में उतरता हुआ मौसम

हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा

वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा

ज़ुबैर रिज़वी

परिंदे लौट आए

ज़ुबैर रिज़वी

इक तेरे सिवा

ज़ुबैर रिज़वी

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी

ज़ुबैर रिज़वी

अभी मुझ से किसी को मोहब्बत नहीं हुई

ज़ियाउल हसन

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