मौसम Poetry (page 18)

छोड़ा न मुझे दिल ने मिरी जान कहीं का

इफ़्तिख़ार राग़िब

चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल

इफ़्तिख़ार राग़िब

अच्छे दिनों की आस लगा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

इफ़्तिख़ार राग़िब

मिरी आँखों को आँखों का किनारा कौन देगा

इफ़्तिख़ार क़ैसर

रात को बाहर अकेले घूमना अच्छा नहीं

इफ़्तिख़ार नसीम

किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है

इफ़्तिख़ार नसीम

सवाद-ए-हिज्र में रक्खा हुआ दिया हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

अजब तरह का है मौसम कि ख़ाक उड़ती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हवाएँ अन-पढ़ हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बारहवाँ खिलाड़ी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मेरा मालिक जब तौफ़ीक़ अर्ज़ानी करता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब आँखों से ज़बाँ से हर कहानी ले गया

इफ़्फ़त ज़र्रीं

है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम

इफ़्फ़त अब्बास

ऐ मौसम-ए-जुनूँ ये अजब तर्ज़-ए-क़त्ल है

इबरत मछलीशहरी

गर्म आँसू और ठंडी आहें मन में क्या क्या मौसम हैं

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा

इस हाल में जीते हो तो मर क्यूँ नहीं जाते

हुसैन ताज रिज़वी

सूरत-ए-सब्ज़ा-ए-बे-गाना चमन से गुज़रे

हुरमतुल इकराम

अपने चमन पे अब्र ये कैसा बरस गया

हुरमतुल इकराम

दिल को दरून-ए-ख़्वाब का मौसम बोझल रखता है

हुमैरा रहमान

मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ

हुमैरा राहत

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

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