अच्छे दिनों की आस लगा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

अच्छे दिनों की आस लगा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

कैसे कैसे ख़्वाब दिखा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

मैं ने ख़ुद को रोका है जज़्बात की रौ में बहने से

दिल में सौ अरमान दबा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

फ़ुर्क़त के मौसम में कैसे ज़िंदा हूँ तुम क्या जानो

कैसे इस दिल को समझा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

छोड़ के सब कुछ तुम से मिलने आ जाना दुश्वार नहीं

मुस्तक़बिल का ख़ौफ़ दिला कर मैं ने ख़ुद को रोका है

कटते कहाँ हैं हिज्र के लम्हे फिर भी एक ज़माने से

तेरी यादों से बहला कर मैं ने ख़ुद को रोका है

वापस जाने के सब रस्ते मैं ने ख़ुद मसदूद किए

कश्ती और पतवार जला कर मैं ने ख़ुद को रोका है

जब भी मैं ने चाहा 'राग़िब' दुश्मन पर यलग़ार करूँ

ख़ुद को अपने सामने पा कर मैं ने ख़ुद को रोका है

(823) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Achchhe Dinon Ki Aas Laga Kar Maine KHud Ko Roka Hai In Hindi By Famous Poet Iftikhar Raghib. Achchhe Dinon Ki Aas Laga Kar Maine KHud Ko Roka Hai is written by Iftikhar Raghib. Complete Poem Achchhe Dinon Ki Aas Laga Kar Maine KHud Ko Roka Hai in Hindi by Iftikhar Raghib. Download free Achchhe Dinon Ki Aas Laga Kar Maine KHud Ko Roka Hai Poem for Youth in PDF. Achchhe Dinon Ki Aas Laga Kar Maine KHud Ko Roka Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Achchhe Dinon Ki Aas Laga Kar Maine KHud Ko Roka Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.