जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़
हालात कर रहे हैं हालात के मुताबिक़
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तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना
तर्क-ए-तअल्लुक़ात नहीं चाहता था मैं
अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है
दिल से जब आह निकल जाएगी
चंद यादें हैं चंद सपने हैं
इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो
वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना
चाहतों का सिलसिला है मुस्तक़िल
इक बड़ी जंग लड़ रहा हूँ
हो चराग़-ए-इल्म रौशन ठीक से