दिल में कुछ भी तो न रह जाएगा
जब तिरी चाह निकल जाएगी
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चंद यादें हैं चंद सपने हैं
दिल से जब आह निकल जाएगी
इस शोख़ी-ए-गुफ़्तार पर आता है बहुत प्यार
'राग़िब' वो मेरी फ़िक्र में ख़ुद को भी भूल जाएँ
फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद
चश्म-ए-तर को ज़बान कर बैठे
तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना
इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो
पढ़ता रहता हूँ आप का चेहरा
अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है
वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना
एक मौसम की कसक है दिल में दफ़्न