पढ़ता रहता हूँ आप का चेहरा
अच्छी लगती है ये किताब मुझे
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तर्क-ए-तअल्लुक़ात नहीं चाहता था मैं
दिल से जब आह निकल जाएगी
तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना
इक बड़ी जंग लड़ रहा हूँ
इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो
राय उस पर मत करो क़ाएम कोई
वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना
फिर उठाया जाऊँगा मिट्टी में मिल जाने के बाद
इस शोख़ी-ए-गुफ़्तार पर आता है बहुत प्यार
किस किस को बताऊँ कि मैं बुज़दिल नहीं 'राग़िब'
सख़्त-जानी की बदौलत अब भी हम हैं ताज़ा-दम