तबीयत Poetry

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन

ज़ेब ग़ौरी

गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही

ज़ेब ग़ौरी

एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती

ज़ेब ग़ौरी

बदन के दोश पे साँसों का मक़बरा मैं हूँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

आप पर जब से तबीअत आई

ज़की काकोरवी

वाँ तबीअत दम-ए-तक़रीर बिगड़ जाती है

ज़हीर देहलवी

बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है

ज़हीर देहलवी

बख़्त जागे तो जहाँ-दीदा सी हो जाती है

ज़फ़र कलीम

बात मेहंदी से लहू तक आ गई

ज़फ़र कलीम

न जाने क्यूँ मिरी निय्यत बदल गई यक-दम

ज़फ़र इक़बाल

नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई

ज़फ़र इक़बाल

कुछ दिनों से जो तबीअत मिरी यकसू कम है

ज़फ़र इक़बाल

इतना ठहरा हुआ माहौल बदलना पड़ जाए

ज़फ़र इक़बाल

अगर कभी तिरे आज़ार से निकलता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

सुख़नवरान-ए-अहद से ख़िताब

ज़फ़र अली ख़ाँ

है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

यूसुफ़ ज़फ़र

रौशनी मेरे चराग़ों की धरी रहना थी

याक़ूब यावर

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती

वासिफ़ देहलवी

भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ

वसीम ख़ैराबादी

दम-ए-विसाल ये हसरत रही रही न रही

वजीह सानी

ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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