मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था
कुछ आप ही की तबीअत बदल गई होगी
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तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर
ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे