न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
रही जाती है दिल की दिल में हवस
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उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
बढ़ चली है बहुत हया तेरी