उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
जब हम ने कुछ कहा है वो मुस्कुरा दिए हैं
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इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
बढ़ चली है बहुत हया तेरी