फ़िराक़ Poetry

चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला

अनवर अंजुम

इज़हार-ए-हाल सुन के हमारा कभी कभी

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

अब दिल है उन के हल्क़ा-ए-दाम-ए-जमाल में

ज़ोहरा नसीम

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

क्यूँ ऐ ग़म-ए-फ़िराक़ ये क्या बात हो गई

ज़ेहरा निगाह

सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दर्द शायान-ए-शान-ए-दिल भी नहीं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

निगाह-ए-शौक़ को रुख़ पर निसार होने दो

ज़हीर अहमद ताज

नहीं ये रस्म-ए-मोहब्बत कि इश्तिबाह करो

ज़ाहिद चौधरी

अब मिरी याद को दामन की हवाएँ देना

ज़हीर काश्मीरी

हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार

ज़हीर देहलवी

वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त

ज़फ़र इक़बाल

नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई

ज़फ़र इक़बाल

ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है

ज़फ़र अज्मी

तिरे फ़िराक़ में घुटनों चली है तन्हाई

ज़फ़र अहमद परवाज़

ये कमरा और ये गर्द-ओ-ग़ुबार उस का है

यासमीन हबीब

जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख

यासमीन हबीब

शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे

वलीउल्लाह मुहिब

दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है

वली मोहम्मद वली

शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से

वाहिद प्रेमी

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी

विपुल कुमार

इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे

विपुल कुमार

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम

लब-ए-ख़मोश मिरा बात से ज़ियादा है

तारिक़ हाश्मी

निरवान

ताऊस

नफ़स की ज़द पे हर इक शोला-ए-तमन्ना है

ताबिश देहलवी

वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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