फ़िराक़ Poetry (page 6)

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

राम कृष्ण मुज़्तर

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

राज कुमार सूरी नदीम

जब तक मुझे नसीब तिरी दोस्ती रही

राज कुमार सूरी नदीम

फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई

रईस फ़रोग़

हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में

रईस फ़रोग़

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

न कोई ग़ैर न अपना दिखाई देता है

इक़बाल मिनहास

यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया

इक़बाल कैफ़ी

यही नहीं कि निगाहों को अश्क-बार किया

इक़बाल कैफ़ी

मिरी नज़र से जो नज़रें बचाए बैठे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

यही फ़साना रहा है जुनूँ के सहरा में

इन्दिरा वर्मा

तिरे ख़याल का चर्चा तिरे ख़याल की बात

इन्दिरा वर्मा

तमाम फ़िक्र ज़माने की टाल देता है

इन्दिरा वर्मा

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

महफ़िल में उस पे रात जो तू मेहरबाँ न था

इम्दाद इमाम असर

अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा

इम्दाद इमाम असर

फल आते हैं फूल टूटते हैं

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद फ़िराक़ में तपाँ है

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

हम नाक़िसों के दौर में कामिल हुए तो क्या

इमदाद अली बहर

गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं

इमदाद अली बहर

बद-तालई का इलाज क्या हो

इमदाद अली बहर

आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का

इमदाद अली बहर

तमाम उम्र यूँ ही हो गई बसर अपनी

इमाम बख़्श नासिख़

तू ने महजूर कर दिया हम को

इमाम बख़्श नासिख़

वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्ल

इफ़्तिख़ार आरिफ़

थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

इदरीस बाबर

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