फ़िराक़ Poetry (page 2)

शब को फिरे वो रश्क-ए-माह ख़ाना-ब-ख़ाना कू-ब-कू

ताबाँ अब्दुल हई

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

मिला जो ख़ार तो दिल में बिठा लिया मैं ने

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

ख़ैर की नज़्र की है या शर की

सय्यद काशिफ़ रज़ा

तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही

सय्यद अनवार अहमद

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

मैं दिन को रात के दरिया में जब उतार आया

सूरज नारायण

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

सुलैमान अहमद मानी

जो कुछ हुआ सो हुआ अब सवाल ही क्या है

सुहा मुजद्ददी

शाम-ए-फ़िराक़ अपनी फ़रोज़ाँ न कर सके

सुग़रा सब्ज़वारी

वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे

सूफ़ी तबस्सुम

वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे

सूफ़ी तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है

सिराज औरंगाबादी

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

सिराज औरंगाबादी

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

सिदरा सहर इमरान

झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हवा चली तो पसीना रगों में बैठ गया

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हिज्र ग़म का बयान है गोया

श्याम सुंदर लाल बर्क़

हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार

शुजा ख़ावर

पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे

शुजा ख़ावर

इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है

शुजा ख़ावर

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

शोज़ेब काशिर

हिज्र ओ विसाल

शोरिश काश्मीरी

जब मंज़िलों वहम था न शब का

शोहरत बुख़ारी

शब-ए-फ़िराक़ जो दिल में ख़याल-ए-यार रहा

शेर सिंह नाज़ देहलवी

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

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