हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
उधर तो दार पर रक्खा हुआ है
उस के बयान से हुए हर दिल अज़ीज़ हम
समझते क्या हैं इन दो चार रंगों को उधर वाले
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
चारागरी की बात किसी और से करो
दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
रिंद खड़े हैं मिम्बर मिम्बर