आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए
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पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
तंहाई का इक और मज़ा लूट रहा हूँ
अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
मैं ने सिर्फ़ अपने नशेमन को सजाया साल भर
पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे
यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है