रस्में Poetry

अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं

उषा भदोरिया

तमाम ख़ुशियाँ तमाम सपने हम एक दूजे के नाम कर के

शमशाद शाद

वो झंकार पैदा है तार-ए-नफ़स में

शेर सिंह नाज़ देहलवी

गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में

ज़ौक़

याद के शहर मिरी जाँ से गुज़र

शाहिदा तबस्सुम

इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं

इक़बाल उमर

वो आ रहे हैं वो जा रहे हैं मिरे तसव्वुर पे छा रहे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

या वस्ल में रखिए मुझे या अपनी हवस में

इंशा अल्लाह ख़ान

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हुस्न की रीतें इश्क़ की रस्में छोटे बच्चे क्या जानें

एजाज़ अहमद एजाज़

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

दाग़ देहलवी

क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था

बिस्मिल इलाहाबादी

न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

वा'दे झूटे क़स्में झूटी

बक़ा बलूच

सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो

बक़ा बलूच

भरोसे का क़त्ल

अतीया दाऊद

ये मो'जिज़ा भी किसी रोज़ कर ही जाना है

अासिफ़ शफ़ी

ग़ुबार सा है सर-ए-शाख़-सार कहते हैं

असग़र सलीम

कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना

आरज़ू लखनवी

सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं

अमजद इस्लाम अमजद

कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है

अकबर इलाहाबादी

ज़िंदगी

अहमद राही

क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का

अहमद हुसैन माइल

हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं

आलोक श्रीवास्तव

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