कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
सारी जवानी आधा महीना
दुनिया-ए-दिल की रस्में निराली
बे-मौत मरना बे-आस जीना
रोका था दम भर लहराता आँसू
आ आ गया है दाँतों पसीना
वो ऐसे ही हैं जा रे जवानी
जो ख़ुद ही बख़्शा वो ख़ुद ही छीना
जिस का था वअ'दा वो कल न आई
दिन गिनते गुज़रा सारा महीना
मुँह पर सफ़ाई और चोर दिल में
आईना फेंको पोंछो पसीना
बस 'आरज़ू' बस फ़र्दा का वअ'दा
बरसों की बातें दो दिन का जीना
(854) Peoples Rate This