इस छेड़ में बनते हैं होश्यार भी दीवाने
लहराया जहाँ शो'ला अंधे हुए परवाने
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मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
फैल गई बालों में सपेदी चौंक ज़रा करवट तो बदल
वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
नज़र बचा के जो आँसू किए थे मैं ने पाक
हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
कुछ कहते कहते इशारों में शर्मा के किसी का रह जाना
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया
ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से
गोरे गोरे चाँद से मुँह पर काली काली आँखें हैं
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
वहशत हम अपनी ब'अद-ए-फ़ना छोड़ जाएँ
तलाश-ए-रंग में आवारा मिस्ल-ए-बू हूँ मैं