नज़र बचा के जो आँसू किए थे मैं ने पाक
ख़बर न थी यही धब्बे बनेंगे दामन के
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मिरी निगाह कहाँ दीद-ए-हुस्न-ए-यार कहाँ
मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र
सीने में ज़ब्त-ए-ग़म से छाला उभर रहा है
मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
दिल मुकद्दर है आईना-रू का
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
वो सर-ए-बाम कब नहीं आता
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से
हर नफ़स इक शराब का हो घूँट
ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है
हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें