हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें
हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें
चराग़ कब का बुझा पड़ा है मगर अंधेरा कहीं नहीं है
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हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें
चराग़ कब का बुझा पड़ा है मगर अंधेरा कहीं नहीं है
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