इस पार से यूँ डूब के उस पार गए
सोती क़िस्मत को कर के बेदार गए
इतने हुए थक के शल कि फिर उठ न सके
हिम्मत नहीं हारी जान तक हार गए
Rahat Indori
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तेरे तो ढंग हैं यही अपना बना के छोड़ दे
बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
उस की तो एक दिल-लगी अपना बना के छोड़ दे
वाए ग़ुर्बत कि हुए जिस के लिए ख़ाना-ख़राब
भोले बन कर हाल न पूछो बहते हैं अश्क तो बहने दो
आप अपने से बरहमी कैसी
फिर चाहे तो न आना ओ आन बान वाले
न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
ये गुल खिल रहा है वो मुरझा रहा है