ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
ली एक साँस और गली तक महक गई
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बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
नाले मजबूरों के ख़ाली नहीं जाने वाले
किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा
फिर चाहे तो न आना ओ आन बान वाले
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
ये गुल खिल रहा है वो मुरझा रहा है
फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा
नहीं वो अगली सी रौनक़ दयार-ए-हस्ती की
इस पार से यूँ डूब के उस पार गए