बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
घर तो मालूम था रस्ता मुझे मालूम न था
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जो कान लगा कर सुनते हैं क्या जानें रुमूज़ मोहब्बत के
वाए ग़ुर्बत कि हुए जिस के लिए ख़ाना-ख़राब
दूर थे होश-ओ-हवास अपने से भी बेगाना था
हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा
ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
जोश-ए-जुनूँ में वो तिरे वहशी का चीख़ना
दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा
नाम मंसूर का क़िस्मत ने उछाला वर्ना